Hindi Class 12th Bihar Board Subjective Question : बिहार बोर्ड हिंदी महत्त्वपूर्ण सब्जेक्टिव प्रश्न उत्तर।।

Hindi Class 12th Bihar Board Subjective Question

1.Q2. रोज लेखक परिचय सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय (1911-1987) जीवन परिचय:

उत्तर.हिंदी के आधुनिक साहित्य मैं प्रमुख स्थान रखने वाले साहित्यकार सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय का जन्म 7 मार्च सन 1911 के दिन कुशीनगर उत्तर प्रदेश के कसेया नामक स्थान पर हुआ। वैसे इनका मूल निवास करतारपुर पंजाब था। इनकी माता का नाम वयंती देवी और पिता का नाम हीरानंद शास्त्री था जोकि प्रख्यात पुरातत्ववेत्ता थे। अज्ञेय जी की प्रारंभिक शिक्षा लखनऊ में घर पर ही हुई । सन 1925 में इन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से मैट्रिक की तथा सन 1927 में मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज से इंटर किया।

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इसके उपरांत सन 1929 में फॉरमैन कॉलेज लाहौर पंजाब से बीएससी किया और फिर लाहौर से एम ए (अंग्रेजी पूर्वार्ध) किया। क्रांतिकारी आंदोलन में भाग लेने तथा गिरफ्तार होने जाने के कारण इनकी पढ़ाई बीच में ही रुक गई। इनका व्यक्त बड़ा ही प्रभावशाली था तथा यह सुंदर व गठीला शरीर के स्वामी थे। इनका स्वभाव एकांत प्रिय अंत अंतर्मुखी था तथा ये अनुशासन प्रिय व्यक्ति थे। गंभीर चिंतन सील एवं मितभाषी व्यक्तियों के स्वामी अज्ञेय जी अपने मोहन तथा मितभाषण के लिए प्रसिद्ध थे। पिताजी का तबादला बार-बार होते रहने के कारण इन्हें परिभ्रमण का संस्कार बचपन में ही मिला था। इन्हें संस्कृत अंग्रेजी फारसी तमिल आदि कई भाषाओं का अच्छा ज्ञान था। यह बागवानी पर्यटन आदि के अलावा कई प्रकार के पेशेवर कार्यों में दक्ष थे। इन्होंने यूरोप एशिया अमेरिका सहित कई देशों की साहित्यक यात्राओं भी की थी।

आगे जी को साहित्य अकादमी भारतीय ज्ञानपीठ मुगा का अंतरराष्ट्रीय स्वर्णमाल आदि पुरस्कार प्रदान किए गए। देश-विदेश के कई विद्यालयों में इन्हें विजिटिंग प्रोफेसर के रूप में आमंत्रित किया गया। इन्होंने पत्रकारिता के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण पत्र-पत्रिकाओं आदि में कार्य किया जैसे- सैनिक (आगरा), विशाल भारत (कोलकाता), प्रतीक, (प्रयाग), दिनमान (दिल्ली), नया प्रतीक (दिल्ली), नवभारत टाइम्स (नई दिल्ली), थॉट, वाक्य एवरीमैंस (अंग्रेजी में संपादन)। साहित्य के इन महान साधक का निधन 4 अप्रैल सन 1987 के दिन हुआ।

रचनाएं: अज्ञेय जी अद्भुत प्रतिभा के स्वामी थे। इन्होंने 10 वर्ष की अवस्था से ही कविता लिखना आरंभ कर दिया था। वही बचपन में ही खेलने के उद्देश्य इंद्रसभा नामक नाटक लिखा। यह घर में एक हस्तलिखित पत्रिका आनंद बंधु निकालते थे। इन्होंने सन 1924 -25 मैं अंग्रेजी में एक उपन्यास लिखा। सन 1924 में इनकी पहली कहानी इलाहाबाद की सकआउट पत्रिका सेवा में प्रकाशित हुई और इसके बाद इन्होंने नियमित रूप से लेखन कार्य प्रारंभ कर दिया।

2. प्रगति और समाज लेखक परिचय नामवर सिंह (1927) जीवन परिचय –

उत्तर. हिंदी आलोचना के शिखर पुरुष नामवर सिंह का जन्म 28 जुलाई सन 1927 को जीयनपुर वाराणसी उत्तर प्रदेश में हुआ। इनकी माता का नाम बागेश्वरी देवी और पिता का नाम नागर सिंह था। जो एक शिक्षक थे। इनकी प्राथमिक शिक्षा आबाजापुर एवं कमलापुर उत्तर प्रदेश के गांव में हुई। वही इन्होंने हाई स्कूल हीवेट क्षेत्रीय स्कूल बनारस और इंटर उदय प्रताप कॉलेज बनारस से किया। इसके बाद बीएचयू के क्रमशः सन 1949 एवं 1951 में बीए और एमए किया। साथ ही बीएचयू सन 1956 में पृथ्वीराज रासो की भाषा विषय पर पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। सन 1953 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय में स्थाई व्याख्याता रहे।

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सन 1959 -60 मैं सागर विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में कार्य किया। इसके बाद सन् 1960 -65 तक बनारस में रहकर स्वतंत्र लेखन किया। वे जनयुग (सप्ताहिक), दिल्ली में संपादक और राजकमल प्रकाशन में साहित्य सलाहकार भी रहे। सन 1967 से आलोचना त्रैमासिक के संपादन का कार्य संभाला। सन 1970 में जोधपुर विश्वविद्यालय राजस्थान में ही हिंदी विभाग के अध्यक्ष पद पर प्रोफेसर के रूप में नियुक्त हुए। इसके बाद सन 1974 में कुछ समय के लिए कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी हिंदी विद्यापीठ आगरा के निदेशक और सन 1974 में ही जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय दिल्ली के भारतीय भाषा केंद्र में हिंदी के प्रोफेसर के पद पर इनकी नियुक्ति हुई। जे एन यू से 1987 में सेवा मुक्ति के बाद अगले पांच वर्षों के लिए पुननियुक्ति। बाद में सन 1993-96 तक राजा राममोहन राय लाइब्रेरी फाउंडेशन के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया। संप्रति आलोचना त्रैमासिक के प्रधान के रूप में कार्यरत।

आलोचना हिंदी के विकास में अपभ्रंश का योग आधुनिक साहित्य की प्रवृत्तियां छायावाद पृथ्वीराजरासो की भाषा इतिहास और आलोचना कहानी नई कहानी कविता के लिए प्रतिमान दूसरी परंपरा की खोज वाद-विवाद संवाद। व्यक्ति व्यंजक ललित निबंध बकलम खुद साक्षतकारों का संग्रह कहना न होगा।

प्रगति और समाज पाठ के सारांश

उत्तर. कविता संबंधी सामाजिक प्रश्न कविता पर समाज का दबाव तीव्रता से महसूस किया जा रहा है प्रगति काव्य समाज के शास्त्रीय विशेषण और सामाजिक व्याख्या के लिए सबसे कठिन चुनौती रखता है । लेकिन प्रगति धार्मिक कविताएं सामाजिक यथार्थ की अभिव्यक्ति के लिए पर्याप्त नहीं समझी जाती है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने भी प्रबंध काव्य को ही अपना आदर्श माना है। वे प्रगति मुक्तो को अधिक पसंद नहीं करते थे इसीलिए आख्यान आग काव्यों की रचना के संतोष व्यक्त करते थे। मुक्तिबोध की कविताएं नई कविताएं के अंदर आत्म कविताओं की ऐसी प्रबल प्रवृत्ति थी जो या तो समाज निर्देश थे या फिर जिसकी समाजिक अर्थ बता सीमित थी इसलिए व्यापक काव्य सिद्धांत की स्थापना के लिए मुक्तिबोध की कविताओं का समावेश अवश्य था। लेकिन मुक्तिबोध ने केवल लंबी कविताएं ही नहीं लिखी उनकी अनेक कविताएं छोटी छोटी भी है जो कि कम सार्थक नहीं है। मुक्तिबोध का समूचा काव्य मूलत्त: आत्म परख है। रचना विन्यास में कहीं वह पूर्णता नाट्य धर्मी है कहीं नाटक की एक लाख है कहीं नाटकीय प्रगति है और कहीं शुद्ध प्रगति भी है। आत्मरक्षा तथा वहां मेहता मुक्तिबोध की शक्ति है जो उनकी प्रत्येक कविता को गति और ऊर्जा प्रदान करती है। आत्मक प्रगीत आतंक प्रगति भी नाटक धर्मी लंबी कविताओं के समान ही यथार्थ को प्रतिध्वनी करते हैं। कवि एक प्रति धर्मी कविता में वस्तु वस्तु गति अर्थात अपनी चरम आत्मा के रूप में व्यक्त होता है। त्रिलोचन तथा नागार्जुन का काव्य त्रिलोचन में कुछ चरित्र केंद्रित लंबी वर्णनात्मक कविताओं के अलावा ज्यादातर छोटे-छोटे गीत ही लिखे हैं।। लेकिन जीवन जगत और प्रकृति के जितने रंग-बिरंगे चित्र त्रिलोचना के काव्य संसार में मिलते हैं वह अन्यत्र दुर्लभ है वही नागार्जुन की आक्रमक काव्य प्रतिभा के बीच बीच आत्मक प्रगति प्रगति दात वर्क अभिव्यक्ति के क्षण कम ही आते हैं l लेकिन जब आते हैं तो उनकी विकट तीव्रता प्र गीतो के परिचित संसार के एक झटके में चीन भिंड कर देती है। प्रगति काव्य के प्रसंग में मुक्तिबोध त्रिलोचन और नागार्जुन का उल्लेख एक नया प्रतीत धर्मी कवि व्यक्तित्व है। विभिन्न कवियों द्वारा प्रगति का निर्माण यद्यपि हमारे साहित्य काव्य क्रश में मानदंड प्रबंध काव्य का आधार पर बने हैं फुलस्टॉप लेकिन यहां की कविता का इतिहास मुख्यतः प्रगति मुफ्त का है। कबीर सूर मीरा नानक रैदास आदि संतों ने प्रायर दोहे तथा यह पद ही लिखे हैं विद्यापति को हिंदी का पहला कवि माना जाए तो हिंदी कविता का उदय ही गीतों का हुआ है। लोक भाषा को साफ-सुथरी प्रगति आत्मक का यह उन्मेष भारतीय साहित्य की अभूतपूर्व घटना है।

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